Wednesday 26 September 2012

हमने तो बस प्यार किया था |


मैने तो बस प्यार किया था |

स्कूल से लौटते वक़्त लहराते उसके बालों के रिबन से
दातों से कटरी उसकी लाल काली पेंसिल से
मुझपर होली का रंग डालती उसकी पिचकारी से
शाम को बगीचे में खेल में उसकी पुकारी से
रोशनदान के पीछे छिपी उसकी चितकबरी झलक से
हर मुस्कान पर आपस में टकराती उसकी पलक से
मैने तो बस प्यार किया था |

उसने तो बस प्यार किया था |

मेरी दो एक्सट्रा चक्कों वाली साइकल से
अमरूद के पेड़ के नीचे बनाए मेरे मिट्टी के महल से
मेरी बारिश के गड्ढों में की गयी हर छपाक से
हमेशा गुस्से से लाल रहती मेरी नाक से
हमेशा च्विंगम चबाते रहने के मेरे शगल से
उसकी एक मुस्कान के लिए की गयी मेरी हर हलचल से
उसने तो बस प्यार किया था |

हमने तो बस प्यार किया था |



जाति धर्म के मायने क्या बादल देते उसके रिबन, उसके पेंसिल की कतरन को?
पिचकारी के रंग को, पुकारने के ढंग को?
उस झलक को, उस पलक को, जिससे मैने प्यार किया?

कैसे समझें जाति धर्म के कारण बने इन खून के थक्कों को?
जब प्यार समझता हो सिर्फ वो महल, वो लाल नाक, बारिश की छपाक और साइकल के चक्कों को |

उसने तो शगल से प्यार किया ...
अफसोस, ऐसे प्यार को खत्म करना, अब जाति भेद का शगल है !

अगर दिल में कुछ हलचल हुई हो तो इस छपाक की बौछार में जाति भेद को मिट जाने दें |
और खुशियों के महल में सच्चे प्यार को जीत जाने दें |